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सफर - मौत से मौत तक….(ep-36)

"लेकिन मेरी बात तो सुनो….बेटा….सुनो तो सही कहते हुए नंदू भी अंदर समीर के पीछे पीछे कमरे की तरफ चले गया।

यमराज भी जल्दी से अंदर की तरफ जाने लगा तो नंदू ने उसका हाथ पकड़ के उसे रोक लिया।

"रुक जाओ….अंदर तो मुझे पता है क्या होगा……बस यही की समीर चार खरी खोटी और सुनाएगा, और कहेगा अच्छा हुआ मेरी माँ उसी दिन भर गयी वरना आज लोगो को क्या मुँह दिखाती….और मैं गुस्से में आकर उसे थप्पड़ मार दूँगा, अंदर बस यही होगा, लेकिन बाहर क्या हुआ था देखना ज्यादा जरूरी है"  नंदू ने कहा।

यमराज ने बढ़ते हुए कदमो को पीछे खिंचा और रो रही पुष्पाकली कि तरफ देखा। पुष्पाकली ने अपने आंसू पोछे और इशानी के सामने आ खड़ी हुई और दिए बाए देखकर बोली- "बस मेमसाहिब, इतना ही झूठ बोल सकती मैं……सच कहूँ तो बड़े मालिक के साथ ऐसा करके कसम से बहुत बुरा लग रहा है, वो सपने में भी ऐसा नही सोचते होंगे"

"बस बस….ज्यादा दया करने की जरूरत नही है उस बुढ्ढे पर….बहुत मुश्किल से समीर को अपना बनाया था,मेरी कोई भी बात टालता नही था वो, लेकिन पता नही क्या पट्टी पढ़ा दी थी उसे, हर बात पर पापासे पूछना पड़ेगा, पापा से इजाजत लेनी पड़ेगी, पापा नही हाईकोर्टके जज़ होंगे जैसे वो….लेकिन अब इस घर पर सिर्फ मेरा राज चलेगा…."  इशानी बोली।

"लेकिन मालकीन वो………" पुष्पाकली बोली।

"हां हां याद है मुझे, दे दूँगी पैसे" इशानी बोली।

"वो मेरे बच्चे का ऑपरेशन है आज, कल सुबह तक अगर पैसे नही दिए तो ऑपरेशन नही करेंगे डॉक्टर, मुझे पैसो की और छुट्टी की दोनो की जरूरत है मेमसाहिब" पुष्पाकली ने कहा।

"ठीक है ठीक है, जब जाने लगेगी तो मुझसे मिलकर जाना और खबरदार जो समीर या उस बुड्ढे के आगे पैसे की बात की तो….कुछ और बहाने से रूम में आ जाना मैं समझ जाऊँगी" इशानी बोली।

"और छुट्टी??" पुष्पा ने पूछा।

"छुट्टी तो अब परमानेंट ही मिल जाएगी….ख़बरदार जो पैसे मिलने के बाद दोबारा आयी तो, शाम को जाते जाते समीर से भी कह देना ऐसे घर मे नही रहूँगी जहाँ औरतों को सम्मान नही दिया जा सकता। उनकी मजबूरी का फायदा उठाया जाता है।" इशानी ने पुष्पाकली से कहा।

तभी अंदर से एक तमाचे की जोरदार आवाज आई,  जिसे सुनकर इशानी और पुष्पा दूर दूर खड़े हो गए।

तभी अंदर से चिल्लाते हुए समीर की आवाज भी सुनाई दी……- "हाथ मेरा भी उठ सकता है, मेरे पास भी हाथ है, गलती भी खुद करो और मारो भी हमें….क्या गलत कह दिया मैंने, सही तो कहा कि अगर माँ जिंदा होती तो आज खुदखुशी कर लेती वो….मुझे तो लगता है आप मुझसे झूठ बोलते हो कि मुझे जन्म देने में उनकी मौत हुई, कही ऐसा तो नही की किसी और के साथ देख लिया था उन्होंने और वो ये सह नही पाई….और……"

"समीर……" दोबारा हाथ उठाते हुए नंदू चिल्लाया हालांकि इस बार थप्पड़ नही मारा।

"चिल्लाओ मत….और चले जाओ मेरे कमरे से, इशानी ठीक ही कहती थी, अब लगता है उसकी बात माननी पड़ेगी" समीर ने कहा।

नंदू हताश सा खड़ा रह गया। उसके पास कोई जवाब नही था। और समीर भी उसपर यकीन नही कर रहा था। अब बोलने का कोई फायदा भी नही था। उसने चुप रहना सही समझा।

पापा को खामोश देखकर समीर बोला- "मुझे ही जाना पड़ेगा बाहर, लोगो को शर्म तो आने से रही" 

कहते हुए समीर खुद ही बाहर कि तरफ़ और  हॉल के पुष्पाकली और इशानी की तरफ देखते हुए बोला।

"पापा की तरफ से मैं माफी मांगता हूँ तुमसे……." समीर ने पुष्पाकली से कहा।

"थेँक्स इशानी, तुमने आज पुष्पा को पुलिस के पास जाने से रोककर मेरी और इस घर की इज्जत बचाई है" कहते हुए समीर बाहर की तरफ चले गया।

"लेकिन आप कहाँ जाने लगे?? "इशानी ने पूछा।

"मैं थोड़ी देर अकेले रहना चाहता हूँ,पता है जब भी मैं दुखी होता हूँ और अकेले रहता हूँ तो मुझे ऐसा लगता है, मेरी माँ मेरे आसपास रहती होगी। भले ही जीते जी मैं उनका एहसास नहा कर पाया लेकिन वो हमेशा मेरे साथ थे और रहेंगे।" कहते हुए समिर बाहर को चले गया।

यमराज का ध्यान इशानी और पुष्पा पर टिका था। लेकिन नंदू अंकल ने समीर की बात सुनी तो वो खुश हो गया। और समीर के पीछे भागने लगा।

"अरे आप कहाँ जा रहे हो" यमराज ने पूछा।

"मैं समीर के साथ, तुम यही रुको" नंदू अंकल ने कहा।

"नही मैं भी आता हूँ साथ, आपकी बहु बेटे का असली रंग तो देख लिया,और क्या देखूं" यमराज ने कहा।

"नही नही….तुम जो देखने के लिए इतने दिन से बैचेन थे वो कांड तो आज ही होगा ना….तुम यही रुको और मेरे साथ ही रहना, मैं चला अपनी गौरी से मिलने" नंदू अंकल में कहा।

"ठीक है चलो चलो" यमराज ने कहा,नंदू जाने लगा तो यमराज उसके पीछे चलने लगा।

"तुम क्यो आ रहे हो मेरे पीछे पीछे" नंदू अंकल ने एक बार फिर पूछा।

"अभी अभी आपने कहा कि मेरे साथ ही रहना" यमराज बोला।

"अरे मेरे बाप मेरे साथ यानी कि नंदू के साथ……मेरे पीछे मत आओ…." नंदू ने कहा।

नंदू अंकल बहुत खुश नजर आ रहा था, लेकिन यमराज बहुत दुखी था। नंदू अंकल की बात मानकर यमराज वही रुक गया और सोचने लगा- "जब जब नंदू रोया है,नंदू के जिंदगी में तूफान आया है तब तब नंदू अंकल बहुत खुश हो जाते है, उनकी पिताजी की मौत वाले दिन नंदू खूब रोया लेकिन नंदू अंकल ने ये कह दिया कि बहुत तकलीफ में थे बेचारे, अच्छा हुआ इनका तारण हो गया। , उसके बादजब नंदू की बीवी गौरी नंदू को छोड़ गयी तो नंदू भी महीनों तक बीमार रहा,ना ढंग से कुछ खाया, ना ढंग से सो पाया….लेकिन नंदू अंकल ने तब भी यही कहा की अच्छा हुआ चली गयी वरना अपनी औलाद को इस तरह बदलता देखकर नही जी पाएगी,  और आज जब नंदू की मौत करीब है, नंदू अपने बेटे की बातों से पुरी तरह टूट चुका था, तो नंदू अंकल आज फिर किसी और खुशी की तलाश में भाग गए।

समीर तो जा चुका था, उसके साथ गौरी से मिलने की आस लिए नंदू अंकल भी भाग गया।  लेकिन यमराज वही रुका रहा और देखने लगा कि आखिर हो क्या रहा है।

नंदू भी समीर के कमरे से अपने कमरे की तरफ चले गया। बहुत ही उदास था नंदू, उसकी चलने की चाल ढाल से ऐसा लग रहा था जैसे नंदू होश में ही नही था। सिर झुकाए सहमे कदमो के साथ बिना किसी की तरफ देखे नंदु अपने कमरे में चले गया।

उसके जाने के बाद इशानी ने मौका देखकर पुष्पा से कहा- "तुम यही रुको मैं पैसे लेकर आती हूँ"

इशानी पैसे लेने चली गयी। पुष्पा को अपने मन ही मन बहुत बुरा लग रहा था बड़े मालिक के लिए बड़े मालिक कहा करते थे- "पुष्पा तुम्हे प्याज काटते हुए इतने आसूं क्यो आ जाते है , लाओ मैं काटता हूँ , मुझे बिल्कुल आसूं नही आते और जानती हो क्यो नही आते"

पुष्पा बड़े कौतूहल से उनकी बात सुनती और पूछती- "क्यो नही आते?"

" क्योकि मैं अपने हिस्से के सारे आंसू बहा चुका हूँ, अब जब आंखों में कुछ होगा तभी आएंगे ना" हंसते हुए नंदू बोला।
  बड़े मालिक मुस्कराते हुए अक्सर ऐसी बात बोल जाते की सुनने वाले के आंसू आ जाये, मगर कभी उनके चेहरे में कोई गम नजर नही आता था।

"एक बात और पुष्पाकली……पता है मैं तुमसे इतनी बात क्यो करता हूँ??"  नंदू ने पूछा।

पुष्पाकली भी मुस्कराते हुए बोली - "क्यो??"

इस बार भी नंदू अंकल ने मुस्कराते हुए कहा- "क्योकि मुझसे कोई बात नही करता, मेरी बातें सिर्फ तुम सुनती हो, और तुम्हे जो मैं खाना खाने के बाद कई दफा टिप देता हूँ ना….वो खाना स्वाद बनाने का नही मेरी बकवास भारी बाते जो तुम सुनती हो ना, उसका किराया होता है"

"हहहह….. बड़े मालिक आप सच मे बहुत मजाकिया हो, मुझे कभी एहसास ही नही होता कि मैं काम कर रही हूँ,ना कभी आप बोर होने देते हो , इतनी अच्छी तो बात करते हो, जी सुनेगा उसका मन करेगा सुनते रहे बस आपकी बाते" पुष्पाकली ने हँसी का ठहाका लगाने के बाद कहा।

"कहाँ सुनते है कोई, ना बहु को मेरी बातें पसंद आती है, और ना ही बेटे को इतना टाइम है कि मेरी बात सुन सके।….लेकिन तुम नही समझोगी, अभी तुम्हारे बच्चे छोटे है ना" नंदू बोला।

"अगर बड़े होकर बच्चे ऐसे हो जाते है जो अपने ही माँ बाप को अकेला कर दे, तो मेरे बच्चे छोटे ही ठीक है" पुष्पा ने कहा।

"तुम्हारे लिए वो हमेशा छोटे ही रहेंगे, लेकिन अपने आप मे वो कब बड़े हो जाते है पता नही चलता" नंदू ने कहा।

"पुष्पाकली….ओ पुष्पा….पैसे नही चाहिए क्या??" इशानी ने कहा।
पुष्पा पुरानी बातो से बाहर आते हुए बुदबदायी- "मैंने बहुत बड़ा पाप किया है, मैं पापी हूँ"

"ओए पागल….पैसे पकड़ और फुट ले यहाँ से, नजर मत आ जाना दोबारा। और ज्यादा अफसोस मत कर, हफ्ते भर में मामला शांत हो जाएगा, मैं बस समीर और इसके बीच दरार डालना चाहती थी, लेकिन दरार ही नही बहुत ऊंची दीवार खड़ी कर चुकी हूं,अब समीर सिर्फ वो करेगा जो मैं कहूँगी" इशानी ने कहा।

"और सुन….अगर तूने सच बोलकर पाप धोने की कोशिश भी  की तो सोच लेना, जेल की हवा तू ही खाएगी झूठा इल्जाम लगाना भी एक बहुत बड़ा अपराध है," इशानी ने फिर से धमकी देते हुए कहा।

पुष्पा ने पैसे थामे और चुपचाप छिप छिप के चली गयी। और इशानी भी खुद पर बहुत खुश थी। उसे ना समीर का दर्द नजर आ रहा था ना नंदू की पीड़ा , बस नजर आ रहा था तो अपना मतलब….अपना स्वार्थ……

यमराज को अचानक नंदू अंकल की बात याद आयी कि मेरे साथ ही रहना, यानी कि नंदू के साथ रहना है, जैसे ही याद आया यमराज भागकर नंदू के कमरे में घुस गए।

कहानी जारी है

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4 Comments

Shalini Sharma

08-Oct-2021 09:30 PM

Nice

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Niraj Pandey

07-Oct-2021 01:53 PM

बहुत खूब लिखा है आपने👌

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Seema Priyadarshini sahay

02-Oct-2021 10:39 PM

Very nice

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